Tirupati Balaji Mandir Vishva bhar ke hinduo ka pramukh vaishnav tirth hai. Yah dakshin Bharat me Aandhra Pradesh ke Chittur zile me hain. Puri duniya me yah Hindu dharm ka sabse adhik dhani mandir mana jata hai. 7 pahado ka samuh Sheshachalam ya Venkatachalam ya Venkatachalam Parvat shreni ki choti Tirumala pahad par Tirupati Mandir sthit hai. Bhagvan Venkatesh ko Vishnu ka avtar mana jata hai. Bhagvan Vishnu yaha Venkateshwar, Shrinivas aur Balaji naam se prasiddh hain. Hindu dharmavlambi Tirupati Balaji ke darshan apne jivan ka aisa mahtvapurn pal mante hain, jo jivan ko sakaratmak disha deta hai. Desh-Videsh ke hindu bhakt aur shraddhalugan yaha aakar yathashakti daan karte hain, jo dhan, hire, sone-chandi ke aabhushano ke roop me hota hai. Is daan ke pichhe bhi prachin manyatayen judi hai. Jiske anusar Bhagvan Balaji se mangi murad puri hone par shraddhalu Tirupari ke is Balaji Mandir me shraddha aur aastha ke sath apne sir ke balo ko katvate hain.
Varah Puran me Venkatachalam ya Tirumala ko aadi varah kshetra likha gaya hai. Vayu Puran me Tirupati kshetra ko Bhagvan Vishnu ka Vaikunth ke baad dusra sabse priya nivas sthan likha gaya hai jabki Skand Puran me varnan hai ki Tirupati Balaji ka dhyan matra karne se vyakti svayam ke sath uski anek pidhiyo ka kalyan ho jata hai aur wah Vishnulok ko pata hai. Purano me manyata hai ki Venkatam Parvat Vahan Garud dwara bhulok laya gaya Bhagvan Vishnu ka kridasthal hai. Vainkatam Parvat Sheshachalam ke naam se bhi jana jata hai. Sheshachalam ko Sheshnaag ke avtar ke roop me dekha jata hai. Iske 7 parvat Sheshnaag ke fan mane jate hain. Varah Puran ke anusar Tirumalaai me pavitra Pushkarini Nadi ke tat par Bhagvan Vishnu ne hi Shrinivas ke roop me avtar liya. Aisi manyata hai ki is sthan par swayam Brahmdev bhi ratri me mandir ke pat band hone par anya devtao ke sath Bhagvan Venkatesh ki pooja karte hain.
तिरुपति बालाजी
भगवान : | भगवान विष्णु |
शहर : | चितूर |
राज्य : | आंध्र प्रदेश |
निर्माण : | वंश पल्लव |
क्षेत्र : | दक्षिण भारत |
|
तिरुपति बालाजी मंदिर विश्वभर के हिंदुओं का प्रमुख वैष्णव तीर्थ है. यह दक्षिण भारत में आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में है. पूरी दुनिया में यह हिंदू धर्म का सबसे अधिक धनी मंदिर माना जाता है. सात पहाड़ों का समूह शेषाचलम या वेंकटाचलम पर्वत श्रेणी की चोटी तिरुमाला पहाड़ पर तिरुपति मंदिर स्थित है. भगवान वेंकटेश को विष्णु का अवतार माना जाता है. भगवान विष्णु यहां वेंकटेश्वर, श्रीनिवास और बालाजी नाम से प्रसिद्ध हैं. हिंदू धर्मावलंबी तिरुपति बालाजी के दर्शन को अपने जीवन का ऐसा महत्वपूर्ण पल मानते हैं, जो जीवन को सकारात्मक दिशा देता है. देश-विदेश के हिंदू भक्त और श्रद्धालुगण यहां आकर यथाशक्ति दान करते हैं, जो धन, हीरे, सोने-चांदी के आभूषणों के रूप में होता है. इस दान के पीछे भी प्राचीन मान्यताएं जुड़ी हैं. जिसके अनुसार भगवान से जो कुछ भी मांगा जाता है, वह कामना पूरी हो जाती है. एक मान्यता के अनुसार भगवान बालाजी से मांगी मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु तिरुपति के इस बालाजी मंदिर में श्रद्धा और आस्था के साथ अपने सिर के बालों को कटवाते हैं.
वाराह पुराण में वेंकटाचलम या तिरुमाला को आदि वराह क्षेत्र लिखा गया है. वायु पुराण में तिरुपति क्षेत्र को भगवान विष्णु का वैकुंठ के बाद दूसरा सबसे प्रिय निवास स्थान लिखा गया है जबकि स्कंदपुराण में वर्णन है कि तिरुपति बालाजी का ध्यान मात्र करने से व्यक्ति स्वयं के साथ उसकी अनेक पीढिय़ों का कल्याण हो जाता है और व विष्णुलोक को पाता है. पुराणों की मान्यता है कि वेंकटम पर्वत वाहन गरुड द्वारा भूलोक में लाया गया भगवान विष्णु का क्रीड़ास्थल है. वैंकटम पर्वत शेषाचलम के नाम से भी जाना जाता है. शेषाचलम को शेषनाग के अवतार के रुप में देखा जाता है. इसके सात पर्वत शेषनाग के फन माने जाते है. वराह पुराण के अनुसार तिरुमलाई में पवित्र पुष्करिणी नदी के तट पर भगवान विष्णु ने ही श्रीनिवास के रुप में अवतार लिया. ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर स्वयं ब्रहदेव भी रात्रि में मंदिर के पट बंद होने पर अन्य देवताओं के साथ भगवान वेंकटेश की पूजा करते हैं.
कौशल्या सुप्रजा राम। पूर्व संध्या प्रवर्तते, उठिस्ता। नरसारदुला।
तिरुमाला पर्वत पर स्थित भगवान बालाजी के मंदिर की महत्ता कौन नहीं जानता। इस बार धर्मयात्रा में वेबदुनिया आपके लिए लेकर आया है तिरुपति बालाजी मंदिर। भगवान व्यंकटेश स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है। हर साल करोड़ों लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं। साल के बारह महीनों में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब यहाँ वेंकटेश्वरस्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों का ताँता न लगा हो। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान भारत के सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। इसके साथ ही इसे विश्व के सर्वाधिक धनी धार्मिक स्थानों में से भी एक माना जाता है।
फोटो गैलरी देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
मंदिर के विषय में अनुश्रुति -
प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरि'कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।
वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ाई की थी। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।
वैकुंठ एकादशी के अवसर पर लोग यहाँ पर प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं,जहाँ पर आने के पश्चात उनके सभी पाप धुल जाते हैं। मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
मंदिर का इतिहास -
माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था, परंतु 15 सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही। 15 सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई। 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।
मुख्य मंदिर - श्री वेंकटेश्वर का यह पवित्र व प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है। इसी कारण यहाँ पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं। पुराण व अल्वर के लेख जैसे प्राचीन साहित्य स्रोतों के अनुसार कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही मुक्ति संभव है। पचास हजार से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णतः टीटीडी के संरक्षण में है।
मंदिर की चढ़ाई - पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है। इसके द्वारा प्रभु तक पहुँचने की चाह की पूर्ति होती है। साथ ही अलिपिरी से तिरुमाला के लिए भी एक मार्ग है।
केशदान- इसके अंतर्गत श्रद्धालु प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को समर्पित करते हैं। पुराने समय में यह संस्कार घरों में ही नाई के द्वारा संपन्न किया जाता था, पर समय के साथ-साथ इस संस्कार का भी केंद्रीकरण हो गया और मंदिर के पास स्थित 'कल्याण कट्टा' नामक स्थान पर यह सामूहिक रूप से संपन्न किया जाने लगा। अब सभी नाई इस स्थान पर ही बैठते हैं। केशदान के पश्चात यहीं पर स्नान करते हैं और फिर पुष्करिणी में स्नान के पश्चात मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।
|
श्रद्धालु प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को समर्पित करते हैं। |
|
|
सर्वदर्शनम- सर्वदर्शनम से अभिप्राय है 'सभी के लिए दर्शन'। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम काम्प्लेक्स है। वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहाँ कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। यहाँ पर निःशुल्क व सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है। साथ ही विकलांग लोगों के लिए 'महाद्वारम' नामक मुख्य द्वार से प्रवेश की व्यवस्था है, जहाँ पर उनकी सहायता के लिए सहायक भी होते हैं।
प्रसादम- यहाँ पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है।
लड्डू- पनयारम यानी लड्डू मंदिर के बाहर बेचे जाते हैं, जो यहाँ पर प्रभु के प्रसाद रूप में चढ़ाने के लिए खरीदे जाते हैं। इन्हें खरीदने के लिए पंक्तियों में लगकर टोकन लेना पड़ता है। श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते हैं।
ब्रह्मोत्सव- तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व 'ब्रह्मोत्सवम' है जिसे मूलतः प्रसन्नता का पर्व माना जाता है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व साल में एक बार तब मनाया जाता है, जब कन्या राशि में सूर्य का आगमन होता है (सितंबर, अक्टूबर)। इसके साथ ही यहाँ पर मनाए जाने वाले अन्य पर्व हैं - वसंतोत्सव, तपोत्सव, पवित्रोत्सव, अधिकामासम आदि।
विवाह संस्कार- यहाँ पर एक 'पुरोहित संघम' है, जहाँ पर विभिन्न संस्कारों औऱ रिवाजों को संपन्न किया जाता है। इसमें से प्रमुख संस्कार विवाह संस्कार, नामकरण संस्कार, उपनयन संस्कार आदि संपन्न किए जाते हैं। यहाँ पर सभी संस्कार उत्तर व दक्षिण भारत के सभी रिवाजों के अनुसार संपन्न किए जाते हैं।
रहने की व्यवस्था- तिरुमाला में मंदिर के आसपास रहने की काफी अच्छी व्यवस्था है। विभिन्न श्रेणियों के होटल व धर्मशाला यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इनकी पहले से बुकिंग टीटीडी के केंद्रीय कार्यालय से कराई जा सकती है। सामान्यतः पूर्व बुकिंग के लिए अग्रिम धनराशि के साथ एक पत्र व सौ रुपए का एक ड्राफ्ट यहाँ पर भेजना पड़ता है।
कैसे पहुँचें? तिरुपति चेन्नई से 130 किलोमीटर दूर स्थित है, जो एक मुख्य रेलवे स्टेशन भी है। यहाँ से हैदराबाद, बैंगलुरु और चेन्नई के लिए सड़क व रेल व्यवस्था भी है। वायु मार्ग- तिरुपति पर एक छोटा-सा हवाई अड्डा भी है, जहाँ पर मंगलवार और शनिवार को हैदराबाद से फ्लाइट मिल सकती है। तत्पश्चात एपीएसआरटीसी की बस सेवा भी उपलब्ध है जो परिसर तक पहुँचाने में केवल 20 मिनट लेती है।
तेरह सौ किलोमिटर का सफर तय करके अमरकंटक से निकलकर नर्मदा विन्ध्य और सतपुड़ा के बीच से होकर भडूच (भरुच)के पास खम्भात की खाड़ी में अरब सागर से जा मिलती है।
ऐतिहासिक दृष्टि से नर्मदा के तट बहुत ही प्रचीन माने जाते हैं। पुरातत्व विभाग मानता है कि नर्मदा के तट के कई इलाकों में प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष पाएँ गए है। ये सभ्यताएँ सिंधु घाटी की सभ्यता से मेल खाती है साथी ही इनकी प्राचीनता सिंधु सभ्यता से भी पुरानी मानी जाती है।
देश की सभी नदियों की अपेक्षा नर्मदा विपरित दिशा में बहती है। नर्मदा एक पहाड़ी नदी होने के कारण कई स्थानों पर इसकी धारा बहुत ऊँचाई से गिरती है। अनेक स्थानों पर यह प्राचीन और बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच से सिंहनाद करती हुई गुजरती हैं।
भारत की नदियों में नर्मदा का अपना महत्व है। न जाने कितनी भूमि को इसने हरा-भरा बनाया है। कितने ही तीर्थ आज भी प्राचीन इतिहास के गवाह है। नर्मदा के जल का राजा है मगरमच्छ जिसके बारे में कहा जाता है कि धरती पर उसका अस्तित्व 25 करोड़ साल पुराना है। माँ नर्मदा मगरमच्छ पर सवार होकर ही यात्रा करती हैं, तो आओ चलते हैं हम भी नर्मदा की यात्रा पर।
अमरकंटक : सोहागपुर तहसील में विंध्य और सतपुड़ा पहाड़ों में अमरकंटक नाम का एक छोटा-सा गाँव है। उसी के पास से नर्मदा एक गोमुख से निकलती है। कहते हैं, किसी जमाने में यहाँ पर मेकल, व्यास, भृगु और कपिल आदि ऋषियों ने तप किया था। ध्यानियों के लिए अमरकंटक बहुत ही महत्व का स्थान है।
मंडला : नर्मदा का पहला पड़ाव मंडला है, जो अमरकंटक से लगभग 295 किमी की दूरी पर नर्मदा के उत्तरी तट पर बसा है। सुंदर घाटों और मंदिरों के कारण यहाँ पर स्थित सहस्रधारा का दृश्य बहुत सुन्दर है। कहते हैं कि राजा सहस्रबाहु ने यहीं अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा के प्रवाह को रोकने का प्रयत्न किया था इसीलिए असका नाम 'सहस्रधारा' है।
भेड़ा-घाट : यह स्थान जबलपुर से 19 किमी पर स्थित है। किसी जमाने में भृगु ऋषि ने यहाँ पर तप किया था। उत्तर की ओर से वामन गंगा नाम की एक छोटी नदी नर्मदा में मिलती है। इस संगम अर्थात भेड़ा के कारण ही इस स्थान को 'भेड़ा-घाट' कहते हैं।
यहाँ थोड़ी दूर पर नर्मदा का एक 'धुआँधार' प्रपात है। धुआँधार के बाद साढ़े तीन किमी तक नर्मदा का प्रवाह दोनों ओर सौ-सौ फुट से भी अधिक ऊँची संगमरमरी दीवारों के बीच से सिंहनाद करता हुआ गुजरता है।
होशंगाबाद : भेड़ा-घाट के बाद दूसरे मनोरम तीर्थ हैं- ब्राह्मण घाट, रामघाट, सूर्यकुंड और होशंगाबाद। इसमें होशंगाबाद प्रसिद्ध है। यहाँ पहले जो गाँव था, उसका नाम 'नर्मदापुर' था। इस गाँव को होशंगशाह ने नए सिरे से बसाया था। यहाँ सुंदर और पक्के घाट है, लेकिन होशंगाबाद के पूर्व के घाटों का ही धार्मिक महत्व है।
नेमावर : होशंगाबाद के बाद नेमावर में नार्मदा विश्राम करती है। नेमावर में सिद्धेश्वर महादेव का महाभारत कालीन प्राचीन मंदिर है। नेमावर नर्मदा की यात्रा का बीच का पड़ाव है, इसलिए इसे 'नाभि स्थान' भी कहते हैं। यहाँ से भडूच और अमरकंटक दोनों ही समान दूरी पर है। पुराणों में इस स्थान का 'रेवाखंड' नाम से कई जगह महिमामंडन किया गया है।
यड़ी कुंड :
नेमावर और ॐकारेश्वर के बीच धायड़ी कुंड नर्मदा का सबसे बड़ा जल-प्रपात है। 50 फुट की ऊँचाई से यहाँ नर्मदा का जल एक कुंड में गिरता है। जल के साथ-साथ इस कुंड में छोटे-बड़े पत्थर भी गिरते रहते हैं, जो जलघर्षण के कारण सुंदर, गोल और चमकीले शिवलिंग बन जाते हैं। सारे देश में शिवलिंग अधिकतर यहीं से जाते हैं। यहीं पुनासा की जल विद्युत-योजना का बाँध तबा नदी पर बना है।
ॐकारेश्वर :
कहते हैं कि वराह कल्प में जब सारी पृथ्वी जल में मग्न हो गई थी तो उस वक्त भी मार्केंडेय ऋषि का आश्रम जल से अछूता था। यह आश्रम नर्मदा के तट पर ॐकारेश्वर में है। ॐकारेश्वर में ज्योर्तिलिंग होने के कारण यह प्रसिद्ध प्राचीन हिंदू तीर्थ है।
ॐकारेश्वर के आसपास दोनों तीरों पर बड़ा घना वन है, जिसे 'सीता वन' कहते हैं। वाल्मीकि ऋषि का आश्रम यहीं कहीं था।
मंडलेश्वर और महेश्वर :
ॐकारेश्वर से महेश्वर लगभग 64 किमी की दूरी पर स्थित है। महेश्वर से पहले नर्मदा के उत्तर तट पर एक कस्बा है मंडलेश्वर। विद्धानों का मत है कि मंडन मिश्र का असली स्थान यही है और महेश्वर को प्राचीन माहिष्मती नगरी माना जाता है। मंडलेश्वर से महेश्वर लगभग 8 किमी है।
महेश्वर से कोई 19 किमी पर खलघाट है। इस स्थान को 'कपिला तीर्थ' भी कहते हैं। कपिला तीर्थ से 12 किमी पश्चिम में धर्मपुरी के पास महर्षि दधीचि का आश्रम बताया गया है। स्कंद-पुराण और वायु पुराण में इसका उल्लेख मिलता है।
शुक्लेश्वर :
धर्मपुरी के बाद कुश ऋषि की तपोभूति शुक्लेश्वर से आगे नर्मदा माता चिरवलदा पहुँचती हैं। माना जाता है कि यहाँ विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्री वसिष्ठ और कश्यप ने तप किया था।
बावन गजा :
शुक्लेश्वर से लगभग पाँच किलोमिटर बड़वानी के पास सतपुड़ा की घनी पहाड़ियों में बावन गजा में भगवान पार्श्वनाथ की 84 फुट ऊँची मूर्ति है। यह एक जैन तीर्थ है। बावन गजा की पहाड़ी के ऊपर एक मन्दिर भी है। हिन्दुजन इसे दत्तात्रेय की पादुका कहते हैं। जैन इसे मेघनाद और कुंभकर्ण की तपोभूमि मानते हैं।
शूलपाणी :
बावन गजा के आगे वरुण भगवान की तपोभूमि हापेश्वर के दुर्गम जंगल के बाद शूलपाणी नामक तीर्थ है। यहाँ शूलपाणी के अलावा कमलेश्वर, राजराजेश्वर आदि और भी कई मन्दिर हैं।
अन्य तीर्थ :
शूलपाणी से आगे चलकर क्रमश: गरुड़ेश्वर, शुक्रतीर्थ, अंकतेश्वर, कर्नाली, चांदोद, शुकेश्वर, व्यासतीर्थ होते हुए नर्मदा अनसूयामाई के स्थान पहुँचती हैं, जहाँ अत्री -ऋषि की आज्ञा से देवी अनसूयाजी ने पुत्र प्राप्ति के लिए तप किया था और उससे प्रसन्न होकर ब्रहा, विष्णु, महेश तीनों देवताओं ने यहीं दत्तात्रेय के रूप में उनका पुत्र होकर जन्म ग्रहण किया था।
आगे नर्मदा कंजेठा पहुँचती है जहाँ शकुन्तला के पुत्र भरत ने अनेक यज्ञ किए। फिर और आगे सीनोर में ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अनेक पवित्र स्थान से गुजरती है।
अंगारेश्वर :
सीनोर के बाद भडूच तक कई छोटे-बड़े गाँव के बाद अंगारेश्वर में मंगल ने तप करके अंगारेश्वर की स्थापना की थी। कहते हैं कि अंगारेश्वर से आगे निकोरा में पृथ्वी का उद्धार करने के बाद वराह भगवान ने इस तीर्थ की स्थापना की। फिर आगे क्रमश: लाडवाँ में कुसुमेश्वर तीर्थ है। मंगलेश्वर में कश्यप कुल में पैदा हुए भार्गव ऋषि ने तप किया था।
यात्रा का अंत :
इसके बाद कुछ मील चलकर नर्मदा भडूच पहुँचती हैं, जहाँ नर्मदा समुद्र में मिल जाती है। भडूच को 'भृगु-कच्छ' अथवा 'भृगु-तीर्थ' भी कहते हैं। यहाँ भृगु ऋषि का निवास था। यहीं राजा बलि ने दस अश्वमेध-यज्ञ किए थे। भडूच के सामने के तीर पर समुद्र के निकट विमलेश्वर नामक स्थान है।
Festivals
The town celebrates most Vaishnava festivals, including Vaikuntha Ekadasi, Rama Navami, and Janmashtami with great splendor, while the Brahmotsavam celebrated every year during September is the most important festival in Tirumala. The temple receives millions of devotees over the short span of a week. Other major festivals include Vasanthotsavam (spring festival), conducted in March–April, andRathasapthami (Magha Shuddha Saptami), celebrated in February, when Lord Venkateswara's deity is taken on procession around the temple chariots.
Prasadam
The world famous Tirupati Laddu is given at Tirumala Temple as prasadam. [29] Recently the Trust has taken Geographical Indication of Laddu prasaddam, hence, no one can prepare the same Laddu. Many other prasadams are also available including daddojanam (curd rice), pulihora (tamarind rice), vada and chakkera-pongali (sweet pongal), miryala-pongali, Appam, Paayasam, Jilebi, Muruku, Dosa, seera (kesari). Free meals are given daily to the pilgrims. On Thursdays, the Tirupavadai seva occurs, where food items are kept for naivedyam to Lord Srinivasa.
Hair tonsuring
When Lord Balaji was hit on his head by a shepherd, a small portion of his scalp became bald. This is noticed by Neela Devi, a Gandharva princess. She feels "such an attractive face should not have a flaw". Immediately she cuts a portion of her hair and with her magical power she implants it on his scalp. Lord Balaji notices her sacrifice. As hair is a beautiful aspect of the female, he promises her that all his devotees who come to his abode should render their hair to him, and she would be the recipient of all the hair received. Hence it is believed that hair offered by the devotees is accepted by Neela Devi. The hill Neeladri, one among seven hills is named after her.
Hundi (donation pot)
It is believed that Srinivasa had to make arrangements for his wedding. Lord Kubera credited money to the god Venkateshwara (a form of the god Vishnu) for his marriage with Padmavati. Srinivasa sought a loan of one crore and 14 lakh (11,400,000) coins of gold from Kubera and had Viswakarma, the divine architect, create heavenly surroundings in the Seshadri hills. Together, Srinivasa and Padmavathy lived for all eternity while Goddess Lakshmi, understanding the commitments of Lord Vishnu, chose to live in his heart forever [citation needed]. In remembrance of this, devotees go to Tirupati to donate money in Venkateshwara's hundi (donation pot) so that he can pay it back to Kubera. The hundi collections go as high as 22.5 million INR a day. [8] Devotees offer gold as a token of their love for God. The annual gold offering goes as high as 3000 kg. [32]
Thulabharam
One of the most important offering in this temple, is the ‘thulabharam.’ In the Thulabaram ritual, a devotee sits on a pan of a weighing balance and the other pan is filled with materials greater than the weight of the devotee. Devotees usually offer sugar, jaggery, tulsi leaves, banana, gold, coins. This is mostly performed with newborn babies or children.
Arjitha seva (paid services)
When pilgrims purchase arjitha seva tickets, they get the opportunity to see a seva performed to the Lord, obtain prasadam in the form of vastram (clothes), akshantalu (sacred and blessed rice) and food articles (laddus, vadas, dosas, pongal, rice items) and a darshan of the utsava murti
Worship
The names ascribed to the main deity are Balaji, Srinivasa, Venkateswara, Edukondalavadu(Lord of seven hills in Telugu) and Venkatachalapathyor Venkataramana. The goddess Sri or Lakshmi (Vishnu's consort) resides on the chest of Venkateswara; thus, he is also known by the epithet "Srinivasa" (the one in whom Sri resides). The goddesses Lakshmi and Padmavathi reside on either side of his chest. The deity is considered the Kali yuga varada, that is, 'the boon-granting Lord of Kali yuga'. (Kali yuga is the fourth and final age of the Hindu cycle of ages). The temple is held in particular reverence by the sect who hails from of "Naimisharanya" (north India), known as the Sri Vaikhanasa/ Adhi Vaikhanasas followers of Sri Vikanasa Muni.
For worshippers, the deity Venkateswara symbolises goodness. When people travel to Tirupati, they chant the mantra Yedu Kondala Vada Venkataramana Govinda Govinda(in Telugu) or Om namo narayanaaya or Om Sri Venkatesaya Namah (in Sanskrit). Lord Venkateswara is believed by followers to be a very merciful form of Vishnu, being the fulfiller of every wish made to him by the devotees.
Several composers composed beautiful kirtanas about Lord Venkateswara, the most notable amongst them being Tyagaraja and Annamacharya, who composed mostly in Telugu. Annamacharya (1408–1503) was a legendary devotee of Lord Venkateswara and composed songs almost exclusively about the deity.
Lord Vishnu is worshiped in the Temple as per Vaikhanasa traditions. The ancient texts of the sage Marichi (the Bhagvad Shastram and Vimanarchana Kalpam) state that Lord Vishnu here should be worshipped six times a day.
- UshaKala Aradhana — worship (or Aradhana) should start and finish before sunrise
- Prathakala Aradhana — worship should start after sunrise and finish before noon
- Madhyanika Aradhana — worship should start and finish at noon
- Aparahana Aradhana — worship should start when the sun starts to descend
- SandhyaKala Aradhana — worship should start and finish around the sunset
- Ardharatri Aradhana — worship should start after the horizon is completely dark
All the Aradhana is done by hereditary Vaikhanasa priests, who have performed the services for generations. Only these priests have the right to touch and offer services to the Lord. These set of Archakas are called Mirasidars (owners and shareholders of the temple). The four families of the Tirumala Temple which are in this Mirasi are the Gollapalli, Peddintti, Paidipalli, and Tirupathammagari family.
|
|